भारत के पिछड़ों-दलितों को अपना इतिहास जानना आवश्यक है जब तक यह लोग इतिहास नहीं जानेगे तो आपसी प्रेम भाव पैदा नहीं होगा। जो अपने को कृष्ण का वंशज मानते हैं उन्हें जानना चाहिए कि ऋग्वेद में कृष्ण को असुर लिखा गया है। आर्यों के राजा इन्द्र से कृष्ण अनार्य का युद्ध हुआ था युद्ध में हारने पर इन्द्र ने यमुना नदी का बांध कटवा दिया जिससे वृन्दावन मथुरा में पानी भर गया तब कृष्ण की बस्ती के लोग गोवर्धन पर्वत पर चले गये थे।
कृष्ण के आठ विवाह हुए थे जिसमें यदुवंश के अतिरिक्त आदिवासी समाज से भी उनकी कई पत्नियां थी जिससे प्रमाणित होता है कि उस समय जातियाँ या तो थी नहीं अगर होंगी तो विवाह का कोई प्रतिबन्ध नहीं था। कृष्ण की एक पत्नी रुकमणी से प्रद्युम्न पैदा हुए; प्रद्युम्न के पुत्र अनुरुद्ध थे। जिनका विवाह वाणासुर की पुत्री ऊषा के साथ हुआ था, वाणासुर ने ही वाराणसी नगर बसाया था जो उसकी राजधानी थी, पाठकगण विचार करें कि वाणासुर तो असुर परिवार से थे, फिर कृष्ण के पौत्र अनुरुद्ध का विवाह कैसे हुआ, क्योंकि कृष्ण भी असुर ही थे इसलिए बराबरी के कारण ही अनुरुद्ध का ऊषा से विवाह हुआ था। वाणासुर के पिता राजा बली थे जिन्हें आर्य इन्द्र के भाई विष्णु ने छल से मारा था, पुरोहित जब हाथ में लाल पीला धागा (कलावा) रक्षासूत्र के रूप में बाधता है तो मन्त्र पढ़ता है-
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलाः
तेन त्वां प्रतिबध्नामि रक्षे, मा चल, मा चल।।
अर्थ है इसी से तुम्हारे दादा, परदादा महाबली दानवो के राजा बली बांधे गये थे उसी से तुम्हें बांधता हूँ तुम चलायमान न होना, चलायमान न होना। जानकारी न होने के कारण आज पिछड़े, दलित वर्ग के लोग यह धागा बाँधकर गौरवान्वित होते है उन्हें यह नहीं मालूम कि यह धागा मानसिक गुलामी का प्रतीक है। राजा बली के पिता का नाम विरोचन था, विरोचन के पिता का नाम प्रह्लाद था, प्रह्लाद के पिता का नाम हिरणाकश्यप था। हिरणाकश्यप की एक बहन थी जिसका नाम होलिका था। होलिका युवा और बहादुर लड़की थी जिसका विवाह होने वाला था। वह आर्यों से युद्ध में हिरणाकश्यप के समान ही लड़ती थी। हिरणाकश्यप का पुत्र प्रह्लाद था, जिसे आर्यों ने शराब आदि पिला-पिलाकर नशेड़ी बना दिया था। जिससे वह आर्यों का दास (भक्त) बन गया था। नशेड़ी होने के कारण राजा हिरणाकश्यप ने प्रह्लाद को बस्ती से बाहर रहने का आदेश दिया था, प्रह्लाद अपने नशेड़ी साथियों के साथ बस्ती के बाहर रहता था। पुत्र मोह के कारण प्रह्लाद की माँ अपनी ननद होलिका से उसे भोजन (खाना) भेजवा दिया करती थी।
एक दिन प्रह्लाद की बुआ होलिका शाम के समय उसे भोजन देने गयी थी चूंकि वह राजा की बहन थी और सुन्दर भी थी प्रह्लाद के नशेड़ी आर्य साथियों की होलिका पर नियत खराब हो गयी तो उन्होंने उस दिन प्रह्लाद को खूब शराब पिलाकर बेहोश कर दिया। आर्यों ने होलिका को पकड़कर उसके साथ बलात्कार किया जिससे होलिका बेहोश हो गयी। जब होलिका बेहोश हो गयी तो आर्य नशेड़ियों का नशा दूर होने लगा तब उन्होंने सोचा कि होलिका होश में आने पर यह सब कुछ राजा को बता देगी तो राजा हम सबको मार डालेगें। अतः आर्यों ने रात में ही लकड़ी फूस अर्थात जलने वाली सामग्री इकठ्ठा करके रात में ही होलिका को बेहोशी की हालत में जला कर राख कर दिया।
प्रातः तक जब होलिका घर नहीं पहुँची तो राजा को बताया गया, राजा ने पता लगवाया तो मालूम हुआ कि शाम को होलिका इधर गयी थी लेकिन वापस नहीं आई तो राजा ने उस क्षेत्र के आर्यों को पकड़वा कर मुँह पर कालिख पोतकर और माथे पर कटार या तलवार से चिन्ह बना दिया और यह घोषित कर किया कि यह कायर लोग हैं। साहित्य में एक शब्द वीर होता है जिसका अर्थ बहादुर या बलवान होता है यदि वीर के पहले अ लगा दिया जाय तो अवीर हो जाता है, अवीर माने कायर या बुजदिल। होली के दिन जो लोग माथे पर लाल हरा पीला रंग लगाते हैं उसे अवीर कहते हैं यह कायरता की निशानी है जिसे पिछड़े-दलितों को नहीं लगाना चाहिए और न ही होली में खुशियां मनाना चाहिए बल्कि दलितों-पिछड़ों को, होली को होलिका सहादत दिवस के रूप में मनाना चाहिए। जिस समय यह घटना घटी थी उस समय जातियाँ नहीं थी जातियाँ बाद में बनी है इस कारण होलिका DNA रिपोर्ट के अनुसार सभी पिछड़े-दलितों की बहिन या बुआ थी जिसके साथ बलात्कार करके रात में ही जला दिया गया था। जो अपने को हिन्दू समझते हैं उनके यहां आज भी रात्रि में मुर्दा नहीं जलाया जाता। होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर नहीं बैठी थी यदि गोद में लेकर बैठी होती तो दोनों जलकर राख हो जाते क्योंकि यदि दो व्यक्तियों को लड़की के ढेर पर बैठाकर नीचे से आग लगा दी जाये तो दोनों ही व्यक्ति जलकर मर जायेंगे ऐसा असम्भव है कि साथ-साथ बैठे व्यक्ति में से एक न जले।
कृष्ण के पौत्र अनुरुद्ध का विवाह वाणासुर की पुत्री ऊषा से हुआ था तो अनुरुद्ध के पिता प्रद्युम्न व ऊषा के पिता वाणासुर आपस में रिश्तेदार (सम्बन्धी) थे, अनुरुद्ध के बाबा कृष्ण व ऊषा के बाबा राजाबली आपस में रिश्तेदार थे इस प्रकार राजाबली के पिता विरोचन और विरोचन के पिता प्रह्लाद, प्रह्लाद के पिता हिरणाकश्यप भी अनुरुद्ध से लेकर वसुदेव और नन्दबाबा तक सभी आपस में रिश्तेदार हांेगे।
आज यादव समाज अपने को कृष्ण का वंशज मानते है तो वाणासुर से लेकर हिरणाकश्यप तक सभी यादवों के रिश्तेदार प्रमाणित होते हैं तब होलिका भी यादवों की रिश्तेदार थीं। जिस समाज के रिश्तेदारांे का जिस दिन कत्ल किया गया हो उस दिन उस समाज के लोगों को सहादत दिवस मनाना चाहिए। अतः यादव समाज को होली तथा नवरात्रि को सहादत दिवस के रूप में मनाना चाहिए। पिछड़ा समाज/यादव समाज/कुछ पढ़ना नहीं चाहता जिससे उसे अपने इतिहास की जानकारी नहीं हो पा रही है। जानकारी न होने के कारण यादव समाज अपने पुरखों के हत्यारे राम और दुर्गा की जय जय कार करता है। यादव शक्ति में आर्यों के ग्रन्थ बालमीकी रामायण, वेद, पुराण व स्मृतियों के कुछ अंशो की व्याख्या वैज्ञानिक तरीके से की जाती है। यादव शक्ति के पाठक उसकी जाँच-परख स्वयं भी करेंगे तो अच्छा प्रभाव पड़ेगा।
हिटलर के नश्लीय सर्वश्रेष्ठता से प्रभावित होकर ब्राह्मणवादी भारत मंे व्यवहारिक स्वरूप तो चाहते थे किन्तु सैद्धान्तिक रूप में ऐसा करना असम्भव था। हिटलर द्वारा स्वयं को आर्य नश्ल का कहना ब्राह्मण वादियों के लिए आकर्षण का एक और आधार था। भारत में Racial Super Macy System नश्लीय श्रेष्ठता पद्धति के आधार पर 1925 में आर्यों ने RSS की स्थापना की | 1926 में इसकी व्यख्या ' स्वयं सेवक संघ ' के रूप में किया। व्यवहारिक नाम Racial Super Macy System ( रेसियल सुपरमेसी सिस्टम ) ( नश्लीय श्रेष्ठता पद्धति ) और देश के कमेरा समाज को धोखा देने के लिए सैद्धान्तिक नाम राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ रखा।
आज भी पिछड़े-दलित उससे जुड़कर, कंधे पर लादकर ढो रहे हैं और अनजाने में धोखा खा रहे हैं। उन्हें पता नहीं कि रखना RSS का उद्देश्य नश्लीय श्रेष्ठता पद्धति को बनाये सर्वश्रेष्ठ होने के कारण उसके हाथ में सत्ता है। ब्राह्मण होनी चाहिए और सत्ता पाने के लिए बहुसंख्यक हिन्दू साथ होना चाहिए, हिन्दू को संगठित करने के लिए हिन्दुत्व को जगाना चाहिए ताकि हिन्दू Unit (यूनाइट) (संगठित) होकर भाजपा को वोट दें। पाठकों को इस पर चिन्तन करना चाहिए।